ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और पूज्य संतों ने संस्कृति संवाद – 2023 में सहभाग कर आध्यात्मिक, धार्मिक व सामाजिक विषयों पर विशद् चर्चा की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि सभी विवादों का समाधान संवाद है। संवाद जब संस्कृति पर हो, संस्कारों पर हो, दिव्य विचारों का हो तो फिर समाज को एक दिशा मिलती है। श्री राममन्दिर उद्घाटन समारोह में सहभाग हेतु सभी को आमंत्रित करते हुये कहा कि श्री राममन्दिर के साथ राष्ट मन्दिर की स्थापना हो रही है। उन्होंने कहा कि देव भक्ति अपनी-अपनी हो लेकिन देशभक्ति सभी मिलकर करें। आज इसी की आवश्यकता है। राममन्दिर हमारा राष्ट्रमन्दिर है जो सम्पूर्ण राष्ट्र को जोड़ने का एक ऐतिहासिक कदम है।
’यतो ऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः। अर्थात जिसमें यथार्थ उन्नति, परम कल्याण की सिद्धि होती है वही धर्म है। धर्म वह अनुशासित जीवन क्रम है, जिसमें लौकिक उन्नति तथा आध्यात्मिक परमगति दोनों की प्राप्ति होती है। धर्म द्वारा बनाए गए अनेक गुण सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, क्षमा आदि नैतिक गुण सहजता के साथ सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा हो गए है और यही नियम नैतिकता के भी पर्याय है।
धर्म हमें एक स्वस्थ जीवनशैली जीने की प्रेरणा देते हैं, संसाधनों के कुशलतम और टिकाऊ उपयोग की प्रेरणा देते हैं। यदि हम इन सिद्धांतों को कुशलता के साथ अपनाते हैं तो हमें जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या सामना भी नहीं करना पडेगा और हमारे ये सनातन सिद्धांत समाज में साम्प्रदायिक सौहार्द की स्थापना हेतु अत्यंत आवश्यक है।
वर्तमान समय में पूरा विश्व अतिवाद का सामना कर रहा है परन्तु सनातन संस्कृति हमें सीख देती है कि हमें किसी भी प्रकार के अतिवादी व्यवहार से बचना चाहिये। इस समय दुनिया में जितने भी झगड़े हैं यथा सांप्रदायिकता, आतंकवाद, नक्सलवाद, नस्लवाद तथा जातिवाद आदि किसी न किसी अतिवादी विचारधारा के कारण है। समाज में जो भी आतंकी विचारधारा फैलाने वाले चाहे वह (हमारे वाले हो या हमास वाले हो, हिज़बुल्लाह हो या फिर जिहादी हो) उन सभी को यह समझना होगा कि हम आतंक से शान्ति प्राप्त नही ंकर सकते और न ही समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं इसलिये आईये सब मिलकर युद्ध नहीं अब योग की ओर बढ़े, अर्थात् सभी मिल बैठकर इसका समाधान निकाले। अपने दिलों को बदले, दीवारों को तोड़े, नफरत की दरारों को भरे और दिलों को जोड़े। यही है समाधान और यही है सनातन।
सनातन है तो मानवता है, सनातन है तो समरसता है; सनातन है तो सद्भाव है, सनातन है तो समता है अतः समाज में सनातन की प्रतिष्ठा हो, शान्ति की प्रतिष्ठा हो इसलिये संस्कृति संवाद जरूरी है। मूल सनातन सूत्रों को आत्मसात कर विश्व में व्याप्त इन समस्याओं से काफी हद तक निजात पाई जा सकती है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि सृष्टि और स्वयं के हित और विकास में किए जाने वाले सभी कर्म ही धर्म है। ऋग्वेद में हमारे ऋषि लिखते हैं-सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वेभद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग भवेत् अर्थात समस्त प्राणि सुख-शान्ति से पूर्ण हों, सभी रोग, व्याधि से मुक्त रहें, किसी के भाग में कोई दुख न आए और सभी कल्याण मार्ग का दर्शन व अनुसरण करें। सनातन संस्कृति किसी में भी भेद नहीं करती।
इस दिव्य अवसर पर निर्वाणीपीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर अशोकानन्द जी महाराज, आचार्य महामंडलेश्वर विश्वात्मानन्द जी महाराज, अखिल भारतीय संत समीति के अध्यक्ष अविचलदास जी महाराज, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष रवीन्द्र पुरी जी महाराज, गीता मनीषि स्वामी ज्ञानानन्द जी महाराज, स्वामी धर्मदेव जी महाराज, युवाओं के प्रेरणास्रोत श्री सत्वा बाबा जी, श्री चंपत राय जी, श्री दिनेश जी, श्री अनूप कुमार जी अनेक पूज्य संत, 127 सम्प्रदायों के पूज्य संतों ने सहभाग किया।
रूद्राक्ष अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सम्मेलन केन्द्र वाराणसी में गंगा महासभा द्वारा आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम में मातृ विमर्श के अन्तर्गत सनातन हिन्दू धर्म की मातृ केन्द्रित व्यवस्था, विभिन्न वैश्विक सम्प्रदायों में नारी की स्थिति, स्त्री स्वतंत्रता दैहिक व मानसिक, भारत की विदुषी साधिकायें आदि विषयों पर चर्चा हुई। युवा विमर्श के अन्तर्गत भारतीय युवा जीवन मूल्य एवं सामाजिक सदाचार, कला संस्कृति के आवरण में परोसी जा रही विकृति, साहित्य सिनेमा एवं अध्यात्म, राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को छिन-भिन्न करने के लिये इतिहास लेखन में कम्युनिस्टों के षड्यन्त्र, राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के सांस्कृतिक सूत्र तथा समानान्तर सत्र कें इतिहास का उपहास, पंचमहाभूत, विज्ञान और विकल्प वृति, हिन्दू भारत में दोयम दर्जे का नागरिक, हिन्दू मन्दिरों पर सरकारों का अवैध कब्जा, कट्टरपन्थ के बढ़ते प्रभाव से आन्तरिक सुरक्षा की चुनौतियाँ, गजवा ए हिन्द का मिशन व वक्फ कानून, संस्कृति और समाज का शत्रु सेन्सर बोर्ड, भारतीय स्वास्थ्य संस्कृति और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियाँ आदि विषयों पर पूज्य संतों, विद्वानों और विशेषज्ञों ने अपने विचार व्यक्त किये।