देहरादून। राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से रुड़की और काशीपुर सर्कल के अंतर्गत स्थापित स्टील फैक्ट्री में बिजली चोरी की जांच ईडी तथा सीबीआई से कराए जाने की मांग करते हुए तहसीलदार सुरेंद्र देव के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया तथा प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता करते हुए उत्तराखंड की स्टील फैक्ट्री में हो रही बिजली चोरी को लेकर अधिकारियों पर गंभीर सवाल खड़े किए।
पार्टी ने 4 सूत्रीय मांग पत्र सौंपते हुए कहा कि यदि 15 दिन के अंदर इस पर कार्रवाई नहीं हुई तो फिर पार्टी कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर जनहित में उग्र आंदोलन को बाध्य हो जाएंगे। पार्टी ने इसकी शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय तथा सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय को भी कर दी हैं।
राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव प्रसाद सेमवाल ने कहा कि उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन के अधिकारी उत्तराखंड के रुड़की और काशीपुर सर्किल मे स्थापित स्टील फैक्ट्रियों में हर महीने 5 बतवतम नदपजे, (जिसकी क़ीमत लगभग 40 करोड़ रुपये है ) की बिजली चोरी करा रहे हैं। जो कि सालाना लगभग 500 करोड़ रुपए का सीधा-सीधा राजस्व का नुकसान है। फिर उसकी भरपाई ईमानदारी से काम करने वाली दूसरी फैक्ट्रियों और आम उपभोक्ता के बिजली बिलों का टैरिफ बढ़कर कर रही है। यह सरासर अन्याय है। बिजली चोरी के कारण प्रदेश में ईमानदारी से काम करने वाली फैक्ट्रियां तो लगातार बंद हो रही है लेकिन ऊर्जा निगम की मिली भगत से बिजली चोरी करने वाली फैक्ट्रियां उत्तर प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों से अपना काम समेट करके उत्तराखंड में भट्टियां बढ़ा रही हैं, जिससे सरकार को विद्युत के राजस्व में तो भारी नुकसान हो ही रहा है वहीं सही ढंग से काम करने वाली फैक्ट्रियां नुकसान के चलते बंदी की कगार पर हैं। बिजली चोरी करने वाली कई फैक्ट्रियों ने चार से लेकर 8,10 तक फर्नेस लगा रखे हैं। लेकिन विद्युत बिल एक ही फर्नेस का दिखा रखा है। बाकी फर्नेस चोरी की बिजली से चल रहे हैं। हालात यहां तक हो गई है कि बिजली चोरी करने वाली फैक्ट्रियां उत्तर प्रदेश की इकाइयों में काम कम करके उत्तराखंड में ही उत्पादन कर रही हैं और मोनोपोली बनाने के लिए कच्चा माल महंगी दरों पर खरीद रही हैं तथा तैयार माल अपेक्षाकृत सस्ती दरों पर बेच रहे हैं। इनकी भरपाई तो बिजली चोरी के चलते हो जाती है लेकिन जिन क्षेत्रों में बिजली चोरी नहीं होती तथा लाइन लॉस लगभग जीरो है, उनको महंगा कच्चा माल मिलने के करण वह फैक्ट्रियां प्रतिस्पर्धा से बाहर हो रही हैं और परिणाम स्वरुप बंदी की कगार पर हैं।