देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने के लिए मसौदा तैयार कर रही विशेषज्ञों की समिति का कार्यकाल चार महीने बढ़ा दिया है। यह तीसरी बार होगा जब समिति का कार्यकाल बढ़ाया गया है। अधिकारियों ने बताया कि समिति का कार्यकाल 27 सितंबर को समाप्त हो रहा है। यूसीसी द्वारा की गई प्रगति और विभिन्न स्रोतों से प्राप्त सुझावों के विश्लेषण के आधार पर जिन्हें पैनल द्वारा लागू करने की आवश्यकता है। कार्यकाल विस्तार का आदेश शुक्रवार को उत्तराखंड की अतिरिक्त मुख्य सचिव राधा रतूड़ी द्वारा जारी किया गया था।
उत्तराखंड सरकार ने पिछले साल 27 मई को छह महीने में राज्य में यूसीसी के कार्यान्वयन के लिए एक मसौदा तैयार करने के लिए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजना देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय मसौदा समिति का गठन किया था। पिछले साल दिसंबर में पैनल का कार्यकाल 27 मई 2023 तक बढ़ा दिया गया था, इस साल 9 मई को समिति का कार्यकाल दूसरी बार फिर चार महीने के लिए बढ़ा दिया गया। यूसीसी पैनल के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘यूसीसी पैनल ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर यूसीसी के सभी पहलुओं पर मसौदा कार्य पूरा करने के लिए चार महीने का विस्तार मांगा था।’
यूसीसी अनिवार्य रूप से देश के सभी नागरिकों के लिए शादी, तलाक, विरासत और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक सामान्य सेट को संदर्भित करता है। संविधान का अनुच्छेद 44, जो राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में से एक है। समान नागरिक संहिता की भी वकालत करता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 कहता है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
इस साल 8 सितंबर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि अगर यूसीसी कमेटी 2024 से पहले अपना मसौदा सौंप देती है तो इस साल उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू कर दी जाएगी। हिंदुस्तान अखबार द्वारा आयोजित शिखर सम्मेलन में भाग लेते हुए राज्य सरकार 2024 से पहले राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करेगी। उन्होंने कहा था, ‘यूसीसी कमेटी सभी पहलुओं पर काम कर रही है। इसका असर देशभर में होगा, इसलिए सभी पहलुओं का पूरा आकलन करने के बाद ड्राफ्ट को अंतिम रूप दिया जा रहा है। यदि समिति द्वारा 2024 से पहले मसौदा दिया जाता है, तो इसे इसी वर्ष राज्य में लागू किया जाएगा।’
धामी ने पिछले साल 12 फरवरी को चुनाव प्रचार के दौरान घोषणा की थी कि सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार यूसीसी को लागू करना पहला निर्णय होगा। इससे पहले पिछले साल 24 मार्च को राज्य में सरकार बनने के बाद पहली कैबिनेट बैठक में बीजेपी सरकार ने राज्य में यूसीसी लागू करने का प्रस्ताव पारित किया था। कैबिनेट बैठक के बाद धामी ने कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 44 राज्य सरकारों को यूसीसी लागू करने का भी अधिकार देता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है, ‘राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।’
यूसीसी समिति के घटनाक्रम से अवगत एक अधिकारी के अनुसार, महिलाओं पर ध्यान केंद्रित करने वाले मसौदे में ऐसी सिफारिशें शामिल होंगी जिनमें बहुविवाह/बहुपति प्रथा पर प्रतिबंध, समान बच्चा गोद लेने के कानून और बच्चों को गोद लेने में समान कानूनी रोशनी, न्यूनतम आयु में वृद्धि शामिल है। साथ ही 18 से 21 वर्ष की महिलाओं के लिए विवाह, मुस्लिम महिलाओं के लिए माता-पिता की संपत्ति में समान हिस्सेदारी, लिव-इन रिलेशनशिप का अनिवार्य पंजीकरण, माता-पिता को अपनी बहू की संपत्ति/कमाई में हिस्सा पाने में मदद करने के लिए रिवर्स विरासत प्रावधान है।