नई दिल्ली। भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि पर्यटन मंत्रालय ने तब के योजना आयोग तथा वित्त मंत्रालय की आपत्ति के बावजूद ‘स्वदेश दर्शन योजना’ शुरू की तथा विभिन्न परियोजनाओं को मिला कर एक बड़ी योजना बनाने के लिए एक समिति द्वारा की गई सिफारिशों पर ”कार्रवाई नहीं की” जिसकी वजह से इसके उद्देश्य पूरे नहीं हो पाए।
एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि ‘स्वदेश दर्शन योजना’ को लेकर कैग की ‘परफॉर्मेन्स ऑडिट रिपोर्ट’ बुधवार को संसद में पेश की गई। इसमें जनवरी 2015 में योजना की शुरुआत से मार्च 2022 तक की अवधि का उसका ऑडिट किया गया। देश में पर्यटन के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए पर्यटन मंत्रालय ने यह प्रमुख योजना जनवरी 2015 में 500 करोड़ रुपये के शुरुआती परिव्यय के साथ शुरू की थी।
मंत्रालय ने इसके तहत विकास के लिए 15 पर्यटक परिपथ (सर्किट) चिह्नित किए थे जो क्रमश: हिमालय परिपथ, पूर्वोत्तर परिपथ, कृष्ण परिपथ, बौद्ध परिपथ, तटीय परिपथ, रेगिस्तार परिपथ, ग्रामीण परिपथ, आध्यात्मिक परिपथ, रामायण परिपथ, धरोहर परिपथ, तीर्थांकर परिपथ और सूफी परिपथ हैं।
कैग के बयान के अनुसार, मंत्रालय ने 2014-15 से 2018-19 के दौरान 5,455.69 करोड़ रुपये की स्वीकृत लागत के साथ कुल 76 परियोजनाओं (15 परिपथ) को मंजूरी दी। कैग ने विस्तृत जांच के लिए 13 राज्यों से 10 पर्यटन परिपथ से संबंधित 14 परियोजनाओं को चुना था।
बयान में कहा गया है, ”ऑडिट में पाया गया कि तब के नीति आयोग एवं वित्त मंत्रालय की आपत्ति के बावजूद मंत्रालय ने योजना शुरू कर दी। साथ ही मंत्रालय ने स्थायी वित्त समिति की एक समान उद्देश्यों वाली परियोजनाओं का विलय कर एक बड़ी योजना तैयार करने संबंधी सिफारिश पर काम नहीं किया।” इस बयान के अनुसार, इसके चलते मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित विभिन्न योजनाओं को न तो सही से लागू किया जा सका और न ही उद्देश्य की प्राप्ति हो सकी।
रिपोर्ट में कहा गया कि इनमें से अधिकांश योजनाएं 2021-22 में चल रही थीं। इसके बावजूद योजनाओं के प्रसार और उन्हें युक्तिसंगत बनाने का सरकार का उद्देश्य हासिल नहीं हो पाया। कैग के बयान में कहा गया, ”योजना को 500 करोड़ रुपये के शुरुआती परिव्यय के साथ शुरू करने के बाद भी मंत्रालय परियोजनाओं को मंजूरी देता रहा और 2016-17 तक स्वीकृत राशि चार हजार करोड़ रुपये से अधिक पहुंच गई। मंत्रालय ने कैबिनेट की मंजूरी के बिना ही इतनी राशि को मंजूरी दे दी, जबकि एक हजार करोड़ रुपये से अधिक लागत वाली परियोजनाओं के लिए कैबिनेट की मंजूरी जरूरी है।”
कैग ने अपनी रिपोर्ट में योजना से संबंधित अन्य कमियों को भी उजागर किया है। बयान में कहा गया, ”योजना शुरू करने से पहले राष्ट्रीय या राज्य स्तर की रूपरेखा को तैयार करना सुनिश्चित नहीं किया गया। योजना शुरू होने के बाद भी 15 में से 14 पर्यटक परिपथ के लिए ‘डिटेल्ड पर्सपेक्टिव प्लान्स’ (डीपीपी) तैयार करना सुनिश्चित नहीं किया गया जो परियोजनाओं के चयन का और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) का आधार बनता। मंत्रालय के पास योजना को लागू करने के लिए कोई दीर्घकालिक नीति नहीं थी।”
बयान में कहा गया है कि मंत्रालय ने ग्रामीण परिपथ के विकास पर समुचित ध्यान नहीं दिया। ” 31 मार्च 2022 तक ग्रामीण परिपथ के विकास पर केवल 30.84 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जो योजना के कुल खर्च का केवल 0.73 प्रतिशत था।” कैग ने पाया कि मंत्रालय ने परियोजनाओं की पहचान में सक्रिय भूमिका नहीं निभाई और इसके लिए तथा डीपीआर की तैयारी के लिये राज्य सरकारों पर भरोसा किया। बयान के अनुसार, राज्य सरकारों की ओर से प्राथमिकता या पहचान के समुचित मानकों के बिना ही कई परियोजना प्रस्ताव दिए गए जबकि इनमें से कुछ तो पर्यटन परिपथ के मानक के अनुसार ही नहीं थे।
आगे बयान में बताया गया है कि योजना के तहत 243 जिलों में 910 स्थलों और 6,898 घटकों को चयनित किया गया। इसके चलते मंत्रालय और राज्य सरकारें ”सभी स्थलों पर समुचित ध्यान नहीं दे सकीं, जिससे समय पर मंजूरी प्राप्त करने और काम सौंपने में देरी हुई।” परिवहन, पर्यटन एवं संस्कृति पर विभाग संबंधी स्थायी संसदीय समिति की समय समय पर की गई सिफारिशों का जिक्र करते हुए कैग के बयान में कहा गया है कि मंत्रालय ने इन पर कार्रवाई नहीं की।
बयान में गया कि मंत्रालय ने योजना पर व्यय वित्त समिति की सिफारिशों पर सहमति तो व्यक्त की, लेकिन ‘उनका अनुपालन नहीं किया’। इसके चलते समिति द्वारा उठाए गए मुद्दे नहीं सुलझ पाए।